भीड़ भरती थी भारी, कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में, कुछ चेहरे अनुभावों वाले चांदनी भीड़ भरती थी भारी, कभी शाम को तो कभी भरी दुपहरिया में, कुछ चेहरे अनुभावों ...
उठती हूं जब भी पड़े होते घर के काम, मुझे पुकारने लगते घर में दिन भर के काम, उठती हूं जब भी पड़े होते घर के काम, मुझे पुकारने लगते घर में दिन भर के ...
याद आ गया फिर मुझे वो गांव अपना, कच्ची मिट्टी के वो घर जिन पर लगी फूस खपरैल की छत याद आ गया फिर मुझे वो गांव अपना, कच्ची मिट्टी के वो घर जिन पर लगी फूस ख...
मेरे सपनों का भारत , काश ! तीन सौ वर्ष पूर्व की गंगा सा पावन, निर्मल होता! मेरे सपनों का भारत , काश ! तीन सौ वर्ष पूर्व की गंगा सा पावन, निर्मल होता!
हर रोज़ एक एक पाई जमा कर के अपना आशियाना बनाया मैंने! हर रोज़ एक एक पाई जमा कर के अपना आशियाना बनाया मैंने...
क्योंकि सीढ़ियाँ कभी ख़त्म नहीं होतीं। क्योंकि सीढ़ियाँ कभी ख़त्म नहीं होतीं।